लोगों की राय

बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2784
आईएसबीएन :0

Like this Hindi book 0

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 हिन्दी - साहित्यशास्त्र और हिन्दी आलोचना- सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।

उत्तर -

साहित्य के क्षेत्र में मनोविश्लेषणवादी सिद्धान्त का गहरा प्रभाव रहा है। आधुनिक विचारधारा को मनोवैज्ञानिक धरातल पर स्थापित करने का प्रयास फ्रायड, एडलर और युंग ने किया है। मनोविश्लेषण सिद्धान्त के प्रवर्तक फ्रायड हैं और एडलर तथा युंग उनके सहयोगी हैं। यद्यपि इन तीनों ने अपने-अपने पृथक् सिद्धान्त स्थापित किए हैं, परन्तु फ्रायड के सिद्धान्त ने सर्वाधिक प्रभावित किया। इन तीनों विद्वानों द्वारा स्थापित सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) फ्रायड का मनोविश्लेषण सिद्धान्त 'साइकोएनालिसिस' कहलाता है।

(2) एडलर का व्यक्तिगत मनोविज्ञान का सिद्धान्त 'इनडिविजुअल साइकोलॉजी' कहलाता है।

(3) युंग का विश्लेषणात्मक मनोविज्ञान का सिद्धान्त 'एनालिटिकल साइकोलॉजी'। कहलाता है। ये तीनों मनोवैज्ञानिक 'वृहत्रयी' के नाम से विख्यात हैं।

फ्रायड के मनोविश्लेषणवादी सिद्धान्त के चार मुख्य सूत्र हैं-

(1) दृढ़ नियतत्ववाद
(2) अचेतन मन
(3) स्वप्न और
(4) मन की संरचना

नियतत्ववाद का अभिप्राय है कार्यकारण का नियत संबंध अर्थात प्रत्येक मानसिक व्यापार के में कोई न कोई कारण अवश्य होता है और इस कारण को खोजा जा सकता है।

मूल अचेतन मनः इसके तीन स्तर होते हैं-

(1) चेतन,
(2) पूर्ण चेतन
(3) अचेतन।

चेतन मन सामाजिक प्रतिबंधों से जुड़ा रहता है। इसे सभ्यता, संस्कृति, आचार-विचार पर नियन्त्रण रखने वाला कहा जा सकता है। अचेतन मन उन आकांक्षाओं का भण्डार है जो दमित रहने के कारण अत्यन्त व्याकुल रहता हैं। इन आकांक्षाओं में यौन-भावनायें या काम अभिलाषायें प्रमुख हैं। दमित भावनायें आगे चलकर मनोग्रन्थियों का रूप धारण कर लेती हैं। कलात्मक सृजन द्वारा इन मनोग्रन्थियों से मुक्ति मिल जाती है। पूर्ण चेतन मन, चेतन मन और अचेतन मन के मध्य में स्थित रहता है। यह सेंसर का कार्य करता है।

स्वप्न को अचेतन मन की ही अभिव्यक्ति माना जा सकता है यह अतृप्त आकांक्षाओं की तृप्ति का साधन है। स्वप्न का अध्ययन अचेतन मन की जानकारी पाने का महत्वपूर्ण मार्ग हैं।

फ्रायड ने मन का विभाजन एक अन्य रीति से किया इदम् (इड) अहं (इगो) और अत्यहम् (सुपर इगो )।

इड का अर्थ है अचेतन मन। जैविक संघटन में जो कुछ है वह इदम् में ही रहता है।

अहं मूल प्रवृत्तियों को नियन्त्रित करता है। अनूकूल प्रवृत्तियों का समर्थन करता है और प्रतिकूल प्रवृत्तियों को दबा देता है। यह सचेत रूप से क्रियाशील रहता है। अत्यहम् मूलतः चेतन मन है, जो सामाजिक नियम मर्यादाओं से परिचालित होता है।

एडलर अधिकार-भावना को जीवन की केन्द्रीय प्रेरणा शक्ति मानता है। मनुष्य को सामाजिक कार्यों के क्षेत्र में अपने को समायोजित करना पड़ता है। मनुष्य जब जन्म लेता है तब वह शिशु रूप में अत्यन्त असहाय होता है। उसे पालन-पोषण के लिये दूसरों पर निर्भर रहना होता है। अपनी असहाय स्थिति का बोध होने पर उसके मन में प्रतिक्रिया होती है। इस प्रतिक्रिया के तीन रूप होते हैं।

(1) व्यक्ति एक प्रकार की क्षति या कमी को दूसरे प्रकार के उत्कर्ष विधायक कार्यों से पूरा करता है।

(2) वह कर्म विमुख हो सकता है अथवा अपनी हीनता से समझौता कर लेता है।

(3) वह अति क्षति पूर्ति करने लगता है।

इस समायोजन के अभाव में मनुष्य मनस्तापी और रुग्ण हो जाता है। इस रुग्णता के भी तीन रूप हैं :

(1) संरचनात्मक
(2) क्रियात्मक
(3) मानसिक।

संरचनात्मक रूग्णता के अन्तर्गत शारीरिक विकृति आती है। जैसे अंधा होना, लूला होना, लंगड़ा होना, बहरा होना। क्रियात्मक रुग्णता के अन्तर्गत दर्द आदि होने के कारण चलने-फिरने, हाथ उठाने में कठिनाई आदि आती है। मानसिक रुग्णता के अन्तर्गत चिन्ता, भय, उद्वेग, क्षोभ, उदासीनता आदि का समावेश है। फ्रायड की अपेक्षा एडलर का सिद्धान्त अधिक व्यापक है। फ्रायड मनस्ताप को मन की विकृति मानता है और एडलर सम्पूर्ण व्यक्तित्व की विकृति मानता है और एडलर के लिए अधिकार भावना। फ्रायड का उदात्तीकरण और एडलर का क्षतिपूर्ति का सिद्धान्त एक सा ही है।

युंग ने यौन प्रेरणा के स्थान पर जिजीविषा पर अधिक बल दिया। मनुष्य के समस्त संघर्ष जिजीविषा के लिए होते हैं। काम भावना जन्म संघर्ष एकांगी होता है जबकि जिजीविषा जन्म संघर्ष सर्वांगीण होता है।

'कला साहित्य और मनोविश्लेषण सिद्धान्त'

फ्रायड एवं एडलर दोनों ने कला को अचेतन मन की दमित भावनाओं, आकांक्षाओं और हीनता की पूर्ति माना है। उनकी दृष्टि में कलाकार अनिवार्य रूप से मनस्तापी या रूग्ण होता है। फ्रायड मानते हैं कि मनस्तापी कलाकार यौन भावना से ग्रस्त होता है उसी की रम्य कल्पना, स्वप्न या कला द्वारा करता है। कला में उसकी दमित भावना का उदात्तीकरण होता है। एडलर की दृष्टि में कलाकार प्रमुख रूप से अधिकार भावना से युक्त होता है। क्षतिपूर्ति द्वारा उसका मनस्ताप शान्त होता है। फ्रायड कलाकार के संबंध में तो वर्णन करता है पर कला के संबंध में, उसकी रचना-प्रक्रिया के संबंध में उसकी संघटना के संबंध में मौन रहता है। पाठक के सामने कलाकार नहीं होता, कलाकृति होती है। कलाकार के सम्बन्ध में कोई विशेष जानकारी न होने पर भी कलाकृति का सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त किया जा सकता है। अतः मनोवैज्ञानिकों ने और मनोविज्ञान समर्थक, आलोचकों ने कला को मानसिक विकृतियों का परिणाम सिद्ध करने का प्रयास किया। इन्होने प्रायः कृति के आधार पर रचयिता का मनोविज्ञान बताया। रचयिता के जीवन की आशा, निराशा, संघर्ष, तनाव आदि ही उसकी रचनाओं में प्रतिफलित होते हैं। रचनात्मक साहित्य में जो पात्र होते हैं उनमें प्रायः लेखक का अपना व्यक्तित्व झलकता है। मनोविश्लेषण के सहारे उन पात्रों की स्थितियों और कार्यों के जटिल संबंधों को प्रकाशित किया जा सकता है अनेक साहित्यिक कृतियों में मनोवैज्ञानिक कारणों से ग्रस्त पात्रों को 'केस' के रूप में प्रस्तुत किया। ऐसी रचनायें तथ्यात्मक हो जाती हैं। सृजनात्मक कल्पना के अभाव में उन्हें सम्पूर्ण कलाकृति नहीं माना जाता है। वास्तविक कलाकार मनोविज्ञान संबंधी सिद्धान्तों का अध्ययन-मनन करके कलात्मक सृजन में रत नहीं होता। कलागत जटिलता और संश्लिष्टता का उद्घाटन मनोविज्ञान द्वारा सम्भव नहीं है।

युंग ने कहा कि "आदिम अनुभूति कलाकार की सर्जनशीलता का स्रोत है। क्योंकि उसका आकलन संभव नहीं है, इसलिए उसे रूप देने के लिए पौराणिक बिम्ब-विधान की आवश्यकता होती है। अपने आप में वह कोई शब्द या बिम्ब नहीं प्रस्तुत करती, क्योकि उसका रूप धूमिल होता है। उसकी स्थिति उस वात्याचक्र के समान है जो पहुँच की सीमा में पड़ने वाली प्रत्येक चीज को पकड़ लेती है, उसे ऊपर उठाकर दृश्य आकार धारण कर लेती है। उस दृश्य में जो दिखाई पड़ता है वह सामूहिक अचेतन है।'

युंग के सिद्धान्त पर प्रो0 अहमद ने टिप्पणी की है-

'सामूहिक अचेतन, सामूहिक मन, जातीय स्मृति, सामाजिक मनुष्य, आदिम बिम्ब ये या इनसे मिलती-जुलती दूसरी प्रकल्पनायें बहुत ही अपर्याप्त साक्ष्य पर खड़ी हैं। इनमें हमें नये तथ्य नहीं प्रस्तुत होते। केवल शब्दावली नयी है और ये प्राचीन प्रेरणा सिद्धान्त को वैज्ञानिक रूप देकर दुहरा भर देते हैं।"

मनोवैज्ञानिक शब्दावली एक सीमा तक रचना प्रक्रिया को समझने में सहायता करती है। कवि के ह्रदय की उस स्थिति को पकड़ा जा सकता है जिसमें वह रचना करता है। साहित्यिक कृतियों में जहाँ- जहाँ कवि या साहित्यकार का आत्मतत्व अभिव्यक्त होता है वहाँ-वहाँ मनोविश्लेषण का सिद्धान्त सत्य तथ्य का निरूपण कर सकता है, परन्तु यह मानना होगा कि रचनायें आत्मतत्व से भिन्न कुछ और भी होती हैं। जो कुछ आत्म स्वरूप में समाहित होता है, वहीं अभिव्यक्त नहीं होता। सहजानुभूति - आत्मव्यंजना कवि के मानस से ही मूर्त होकर अपना कार्य समाप्त कर लेती है। शब्दबद्ध होने पर वह नैतिकता आदि से अनिवार्यतः सम्बद्ध हो जाती है। मानसिक अभिव्यंजना और शब्दबद्ध अभिव्यंजना में अन्तर होता है।

इस प्रकार मनोविश्लेषण का सिद्धान्त व्यापक स्तर पर आलोचना का प्रतिमान नहीं बन पाया। उसका ग्रहण आंशिक रूप में ही हो सका है।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. प्रश्न- काव्य के प्रयोजन पर प्रकाश डालिए।
  2. प्रश्न- भारतीय आचार्यों के मतानुसार काव्य के प्रयोजन का प्रतिपादन कीजिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी आचायों के मतानुसार काव्य प्रयोजन किसे कहते हैं?
  4. प्रश्न- पाश्चात्य मत के अनुसार काव्य प्रयोजनों पर विचार कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी आचायों के काव्य-प्रयोजन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए?
  6. प्रश्न- आचार्य मम्मट के आधार पर काव्य प्रयोजनों का नाम लिखिए और किसी एक काव्य प्रयोजन की व्याख्या कीजिए।
  7. प्रश्न- भारतीय आचार्यों द्वारा निर्दिष्ट काव्य लक्षणों का विश्लेषण कीजिए
  8. प्रश्न- हिन्दी के कवियों एवं आचार्यों द्वारा प्रस्तुत काव्य-लक्षणों में मौलिकता का अभाव है। इस मत के सन्दर्भ में हिन्दी काव्य लक्षणों का निरीक्षण कीजिए 1
  9. प्रश्न- पाश्चात्य विद्वानों द्वारा बताये गये काव्य-लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  10. प्रश्न- आचार्य मम्मट द्वारा प्रदत्त काव्य-लक्षण की विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- रमणीयार्थ प्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' काव्य की यह परिभाषा किस आचार्य की है? इसके आधार पर काव्य के स्वरूप का विवेचन कीजिए।
  12. प्रश्न- महाकाव्य क्या है? इसके सर्वमान्य लक्षण लिखिए।
  13. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  14. प्रश्न- मम्मट के काव्य लक्षण को स्पष्ट करते हुए उठायी गयी आपत्तियों को लिखिए।
  15. प्रश्न- 'उदात्त' को परिभाषित कीजिए।
  16. प्रश्न- काव्य हेतु पर भारतीय विचारकों के मतों की समीक्षा कीजिए।
  17. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  18. प्रश्न- स्थायी भाव पर एक टिप्पणी लिखिए।
  19. प्रश्न- रस के स्वरूप का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  20. प्रश्न- काव्य हेतु के रूप में निर्दिष्ट 'अभ्यास' की व्याख्या कीजिए।
  21. प्रश्न- 'रस' का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अवयवों (भेदों) का विवेचन कीजिए।
  22. प्रश्न- काव्य की आत्मा पर एक निबन्ध लिखिए।
  23. प्रश्न- भारतीय काव्यशास्त्र में आचार्य ने अलंकारों को काव्य सौन्दर्य का भूल कारण मानकर उन्हें ही काव्य का सर्वस्व घोषित किया है। इस सिद्धान्त को स्वीकार करने में आपकी क्या आपत्ति है? संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- काव्यशास्त्रीय सम्प्रदायों के महत्व को उल्लिखित करते हुए किसी एक सम्प्रदाय का सम्यक् विश्लेषण कीजिए?
  25. प्रश्न- अलंकार किसे कहते हैं?
  26. प्रश्न- अलंकार और अलंकार्य में क्या अन्तर है?
  27. प्रश्न- अलंकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  28. प्रश्न- 'तदोषौ शब्दार्थों सगुणावनलंकृती पुनः क्वापि कथन किस आचार्य का है? इस मुक्ति के आधार पर काव्य में अलंकार की स्थिति स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- 'काव्यशोभाकरान् धर्मान् अलंकारान् प्रचक्षते' कथन किस आचार्य का है? इसका सम्बन्ध किस काव्य-सम्प्रदाय से है?
  30. प्रश्न- हिन्दी में स्वीकृत दो पाश्चात्य अलंकारों का उदाहरण सहित परिचय दीजिए।
  31. प्रश्न- काव्यालंकार के रचनाकार कौन थे? इनकी अलंकार सिद्धान्त सम्बन्धी परिभाषा को व्याख्यायित कीजिए।
  32. प्रश्न- हिन्दी रीति काव्य परम्परा पर प्रकाश डालिए।
  33. प्रश्न- काव्य में रीति को सर्वाधिक महत्व देने वाले आचार्य कौन हैं? रीति के मुख्य भेद कौन से हैं?
  34. प्रश्न- रीति सिद्धान्त की अन्य भारतीय सम्प्रदायों से तुलना कीजिए।
  35. प्रश्न- रस सिद्धान्त के सूत्र की महाशंकुक द्वारा की गयी व्याख्या का विरोध किन तर्कों के आधार पर किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
  36. प्रश्न- ध्वनि सिद्धान्त की भाषा एवं स्वरूप पर संक्षेप में विवेचना कीजिए।
  37. प्रश्न- वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ ध्वनि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  38. प्रश्न- 'अभिधा' किसे कहते हैं?
  39. प्रश्न- 'लक्षणा' किसे कहते हैं?
  40. प्रश्न- काव्य में व्यञ्जना शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
  41. प्रश्न- संलक्ष्यक्रम ध्वनि को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- दी गई पंक्तियों में में प्रयुक्त ध्वनि का नाम लिखिए।
  43. प्रश्न- शब्द शक्ति क्या है? व्यंजना शक्ति का सोदाहरण परिचय दीजिए।
  44. प्रश्न- वक्रोकित एवं ध्वनि सिद्धान्त का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
  45. प्रश्न- कर रही लीलामय आनन्द, महाचिति सजग हुई सी व्यक्त।
  46. प्रश्न- वक्रोक्ति सिद्धान्त व इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  47. प्रश्न- वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजनावाद के आचार्यों का उल्लेख करते हुए उसके साम्य-वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  48. प्रश्न- वर्ण विन्यास वक्रता किसे कहते हैं?
  49. प्रश्न- पद- पूर्वार्द्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  50. प्रश्न- वाक्य वक्रता किसे कहते हैं?
  51. प्रश्न- प्रकरण अवस्था किसे कहते हैं?
  52. प्रश्न- प्रबन्ध वक्रता किसे कहते हैं?
  53. प्रश्न- आचार्य कुन्तक एवं क्रोचे के मतानुसार वक्रोक्ति एवं अभिव्यंजना के बीच वैषम्य का निरूपण कीजिए।
  54. प्रश्न- वक्रोक्तिवाद और वक्रोक्ति अलंकार के विषय में अपने विचार व्यक्त कीजिए।
  55. प्रश्न- औचित्य सिद्धान्त किसे कहते हैं? क्षेमेन्द्र के अनुसार औचित्य के प्रकारों का वर्गीकरण कीजिए।
  56. प्रश्न- रसौचित्य किसे कहते हैं? आनन्दवर्धन द्वारा निर्धारित विषयों का उल्लेख कीजिए।
  57. प्रश्न- गुणौचित्य तथा संघटनौचित्य किसे कहते हैं?
  58. प्रश्न- प्रबन्धौचित्य के लिये आनन्दवर्धन ने कौन-सा नियम निर्धारित किया है तथा रीति औचित्य का प्रयोग कब करना चाहिए?
  59. प्रश्न- औचित्य के प्रवर्तक का नाम और औचित्य के भेद बताइये।
  60. प्रश्न- संस्कृत काव्यशास्त्र में काव्य के प्रकार के निर्धारण का स्पष्टीकरण दीजिए।
  61. प्रश्न- काव्य के प्रकारों का विस्तृत उल्लेख कीजिए।
  62. प्रश्न- काव्य गुणों की चर्चा करते हुए माधुर्य गुण के लक्षण स्पष्ट कीजिए।
  63. प्रश्न- काव्यगुणों का उल्लेख करते हुए ओज गुण और प्रसाद गुण को उदाहरण सहित परिभाषित कीजिए।
  64. प्रश्न- काव्य हेतु के सन्दर्भ में भामह के मत का प्रतिपादन कीजिए।
  65. प्रश्न- ओजगुण का परिचय दीजिए।
  66. प्रश्न- काव्य हेतु सन्दर्भ में अभ्यास के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  67. प्रश्न- काव्य गुणों का संक्षित रूप में विवेचन कीजिए।
  68. प्रश्न- शब्द शक्ति को स्पष्ट करते हुए अभिधा शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  69. प्रश्न- लक्षणा शब्द शक्ति को समझाइये |
  70. प्रश्न- व्यंजना शब्द-शक्ति पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- काव्य दोष का उल्लेख कीजिए।
  72. प्रश्न- नाट्यशास्त्र से क्या अभिप्राय है? भारतीय नाट्यशास्त्र का सामान्य परिचय दीजिए।
  73. प्रश्न- नाट्यशास्त्र में वृत्ति किसे कहते हैं? वृत्ति कितने प्रकार की होती है?
  74. प्रश्न- अभिनय किसे कहते हैं? अभिनय के प्रकार और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  75. प्रश्न- रूपक किसे कहते हैं? रूप के भेदों-उपभेंदों पर प्रकाश डालिए।
  76. प्रश्न- कथा किसे कहते हैं? नाटक/रूपक में कथा की क्या भूमिका है?
  77. प्रश्न- नायक किसे कहते हैं? रूपक/नाटक में नायक के भेदों का वर्णन कीजिए।
  78. प्रश्न- नायिका किसे कहते हैं? नायिका के भेदों पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- हिन्दी रंगमंच के प्रकार शिल्प और रंग- सम्प्रेषण का परिचय देते हुए इनका संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  80. प्रश्न- नाट्य वृत्ति और रस का सम्बन्ध बताइए।
  81. प्रश्न- वर्तमान में अभिनय का स्वरूप कैसा है?
  82. प्रश्न- कथावस्तु किसे कहते हैं?
  83. प्रश्न- रंगमंच के शिल्प का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  84. प्रश्न- अरस्तू के 'अनुकरण सिद्धान्त' को प्रतिपादित कीजिए।
  85. प्रश्न- अरस्तू के काव्यं सिद्धान्त का विवेचन कीजिए।
  86. प्रश्न- त्रासदी सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  87. प्रश्न- चरित्र-चित्रण किसे कहते हैं? उसके आधारभूत सिद्धान्त बताइए।
  88. प्रश्न- सरल या जटिल कथानक किसे कहते हैं?
  89. प्रश्न- अरस्तू के अनुसार महाकाव्य की क्या विशेषताएँ हैं?
  90. प्रश्न- "विरेचन सिद्धान्त' से क्या तात्पर्य है? अरस्तु के 'विरेचन' सिद्धान्त और अभिनव गुप्त के 'अभिव्यंजना सिद्धान्त' के साम्य को स्पष्ट कीजिए।
  91. प्रश्न- कॉलरिज के काव्य-सिद्धान्त पर विचार व्यक्त कीजिए।
  92. प्रश्न- मुख्य कल्पना किसे कहते हैं?
  93. प्रश्न- मुख्य कल्पना और गौण कल्पना में क्या भेद है?
  94. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के काव्य-भाषा विषयक सिद्धान्त पर प्रकाश डालिये।
  95. प्रश्न- 'कविता सभी प्रकार के ज्ञानों में प्रथम और अन्तिम ज्ञान है। पाश्चात्य कवि वर्ड्सवर्थ के इस कथन की विवेचना कीजिए।
  96. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के कल्पना सम्बन्धी विचारों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  97. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार काव्य प्रयोजन क्या है?
  98. प्रश्न- वर्ड्सवर्थ के अनुसार कविता में छन्द का क्या योगदान है?
  99. प्रश्न- काव्यशास्त्र की आवश्यकता का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
  100. प्रश्न- रिचर्ड्स का मूल्य-सिद्धान्त क्या है? स्पष्ट रूप से विवेचन कीजिए।
  101. प्रश्न- रिचर्ड्स के संप्रेषण के सिद्धान्त पर प्रकाश डालिए।
  102. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार सम्प्रेषण का क्या अर्थ है?
  103. प्रश्न- रिचर्ड्स के अनुसार कविता के लिए लय और छन्द का क्या महत्व है?
  104. प्रश्न- 'संवेगों का संतुलन' के सम्बन्ध में आई. ए. रिचर्डस् के क्या विचारा हैं?
  105. प्रश्न- आई.ए. रिचर्ड्स की व्यावहारिक आलोचना की समीक्षा कीजिये।
  106. प्रश्न- टी. एस. इलियट के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए। इसका हिन्दी साहित्य पर क्या प्रभाव पड़ा है?
  107. प्रश्न- सौन्दर्य वस्तु में है या दृष्टि में है। पाश्चात्य समीक्षाशास्त्र के अनुसार व्याख्या कीजिए।
  108. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव तथा विकासक्रम पर एक निबन्ध लिखिए।
  109. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद से क्या तात्पर्य है? उसका उदय किन परिस्थितियों में हुआ?
  110. प्रश्न- साहित्य में मार्क्सवादी समीक्षा का क्या अभिप्राय है? विवेचना कीजिए।
  111. प्रश्न- आधुनिक साहित्य में मनोविश्लेषणवाद के योगदान की विवेचना कीजिए।
  112. प्रश्न- आलोचना की पारिभाषा एवं उसके स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  113. प्रश्न- हिन्दी की मार्क्सवादी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  114. प्रश्न- हिन्दी आलोचना पद्धतियों को बताइए। आलोचना के प्रकारों का भी वर्णन कीजिए।
  115. प्रश्न- स्वच्छंदतावाद के अर्थ और स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  116. प्रश्न- मनोविश्लेषवाद की समीक्षा दीजिए।
  117. प्रश्न- मार्क्सवाद की दृष्टिकोण मानवतावादी है इस कथन के आलोक में मार्क्सवाद पर विचार कीजिए?
  118. प्रश्न- नयी समीक्षा पद्धति पर लेख लिखिए।
  119. प्रश्न- विखंडनवाद को समझाइये |
  120. प्रश्न- यथार्थवाद का अर्थ और परिभाषा देते हुए यथार्थवाद के सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
  121. प्रश्न- कलावाद किसे कहते हैं? कलावाद के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  122. प्रश्न- बिम्बवाद की अवधारणा, विचार और उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  123. प्रश्न- प्रतीकवाद के अर्थ और परिभाषा का वर्णन कीजिए।
  124. प्रश्न- संरचनावाद में आलोचना की किस प्रविधि का विवेचन है?
  125. प्रश्न- विखंडनवादी आलोचना का आशय स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- उत्तर-संरचनावाद के उद्भव और विकास को स्पष्ट कीजिए।
  127. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की काव्य में लोकमंगल की अवधारणा पर प्रकाश डालिए।
  128. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी की आलोचना दृष्टि "आधुनिक साहित्य नयी मान्यताएँ" का उल्लेख कीजिए।
  129. प्रश्न- "मेरी साहित्यिक मान्यताएँ" विषय पर डॉ0 नगेन्द्र की आलोचना दृष्टि पर विचार कीजिए।
  130. प्रश्न- डॉ0 रामविलास शर्मा की आलोचना दृष्टि 'तुलसी साहित्य में सामन्त विरोधी मूल्य' का मूल्यांकन कीजिए।
  131. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की आलोचनात्मक दृष्टि पर प्रकाश डालिए।
  132. प्रश्न- आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की साहित्य की नई मान्यताएँ क्या हैं?
  133. प्रश्न- रामविलास शर्मा के अनुसार सामंती व्यवस्था में वर्ण और जाति बन्धन कैसे थे?

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book